ज़िंदगी में कामयाबी सिर्फ़ आपके हुनर पर निर्भर नहीं करती. आपकी सफलता में आपकी शख़्सियत भी अहम भूमिका निभाती है.

दुनिया आपकी नहीं, आपकी छवि की दीवानी होती है. यह छवि या परसेप्शन आपकी क़ाबिलियत और व्यक्तित्व दोनों से बनती है.

शख़्सियत में एक्स फ़ैक्टर हो तो छवि एक छक्के से भी बन सकती है और न हो तो शतकीय पारी खेलने के बाद भी नहीं बन पाती.

35 साल के शांत और सौम्य चेतेश्वर अरविंद पुजारा के व्यक्तित्व और खेल ने भी उनके लिए एक छवि गढ़ी-क्लासिक क्रिकेटर की.

मगर आक्रामक और फटाफट क्रिकेट के ज़माने में उनकी छवि ही उनके लिए घातक साबित हुई. वो 13 साल तक बीते जमाने का क्रिकेट खेलते रहे जबकि रक्षात्मक और धैर्य पूर्वक बल्लेबाज़ी का समय जा चुका है.

पुजारा के बल्ले से ‘टक’ की जगह ‘टुक’ की आवाज़ आती रही और ‘टैटू’ वाले आगे निकलते चले गए. गेंद उनके बल्ले से टकरा कर हवा की बजाए घास को चूमती हुई बाउंड्री के पार जाती रही है.

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